राम सनेही जद कहे , रटे राम ही राम | जीवन अर्पण राम को, राम करे सब काम || अमृत 'वाणी'

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Saturday, August 22, 2009

जहा आराध्य केवल रामजी महाराज

वर्तमान में जहां शहरों में भी लोग धार्मिक आडम्बर, झाड-फूंक, तंत्र-मंत्र व सामाजिक कुरुतियों के प्रति आस्था जुड़ रही है वहीं महाजनपुरा के लोग २५० वर्ष से आज तक इन बुराइयों से दूर हैं। आज जहा अधिकांश लोग धूम्रपान या अन्य किसी प्रकार के नशे का शौक रखते हैं वहीं इस गांव का कोई भी आदमी किसी भी प्रकार का नशा नहीं करता है। न ही गांव में किसी घर या दुकान पर नशीले पदार्थ मिलते हैं। ऐसी कुछ अन्य विशेषताओं के कारण आस-पास के क्षेत्र में यह गांव चर्चा का विषय रहता है।
नहीं पूजते देवी-देवता
यंहा ग्रामीण किसी भी लोक देवता या अन्य देवताओं की न पूजा करते हैं और ना ही उनको किसी प्रकार का भोग, चढ़ावा, हवन, झाड़-फूंक करते हैं। खास बात यह है की गांव में त्योहारों दीपावली, गोवर्धन, होली इत्यादि पर भी देवी या देवता की पूजा नहीं की जाती है। साथ ही ग्रामीण तीर्थ यात्रा पर भी नहीं जाते हैं।
आराध्य केवल रामजी महाराज
गावं में लोगों की आस्था के रूप में एक रामद्वारा स्थित है। जहां रामस्नेही सम्प्रदाय के संत रामजी महाराज विराजते हैं। ग्रामीण केवल इसी स्थान पर निराकार ईश्वर व गुरु महाराज की आराधना करते हैं। इसके अलावा अन्य मंदिर यहां नहीं है।
पानी पीते हैं छानकर
यहां ग्रामीण परंपरागत रूप से पानी को छानकर पीते आए हैं। वर्तमान में भी यहां ग्रामीण पेयजल को छानकर ही पीते हैं। चाहे घर में एक सदस्य हो या फिर ज्यादा सब इस परंपरा का कड़ाई से पालन करते हैं। इसी का परिणाम है के गांव में लोगों को पानी जनित बीमारियां नहीं होती हैं।
नशे से सर्वथा दूर
गावं के लोग नशे से सर्वथा दूर हैं। यहां बीड़ी, जर्दा, सिगरेट, गांजा, भांग व शराब इत्यादि न तो घर में रखते हैं और न ही दुकान पर मिलती है। यही कारण है गांव में नशे पर अघोषित रोक है।
संतों का लगता है मेला
यहाँ हर वर्ष फाल्गुन बुदी एकादशी से फाल्गुन सुदी एकम तक संतों का मेला लगता है। इन पांच दिनों को गांव में त्योहार के रूप में मनाया जाता है। घरों में पकवान बनते हैं एवं ग्रामीण संतों ·का सम्मान, सत्कार व आराधना करते है संत भी इन दिनों कथा व प्रवचन करते हैं। इस दौरान पूरा गांव धार्मिक माहौल में रंगा नजर आता है।
सभी धर्मों का आदर
ग्रामीण हालांकी रामस्नेही सम्प्रदाय के संतों व उनकी वाणी को ही आराध्य मानते हैं इसके बावजूद यह लोग अन्य सम्प्रदायों, संतों व मान्यताओं की आलोचना करने से न केवल बचते हैं बल्के उनका पूरा आदर भी करते हैं।
२५० वर्ष पुरानी बात
लोगों के अनुसार करीब २५० वर्ष पूर्व गांव की स्थापना के समय से ही गांव में यह परंपराएं हैं। उस समय गांव के लोगों ने रामस्नेही सम्प्रदाय के स्वामी रामचरणदास महाराज से इस पंथ की दीक्षा लेक र मानना शुरू कीया था और तब से ही गांव में इस प्रका र की परंपराएं कायम है। यहां के ग्रामीण आज भी इन परंपरओं का दृढ़ता से पालन करते रहे हैं।
क्या कहते हैं लोग
साठ वर्षीय ग्रामीण महिला गुलाब देवी ने बताया हमारे यहां महिलाएं भी देवी-देवताओं के गीत नहीं गाती हैं। महिलाएं गुरु महिमा व निराकार ईश्वर की महिमा को ही गीतों के रूप में गाती हैं। एक अन्य ग्रामीण पचास वर्षीय राम कीशन चौधरी कहते है हम लोग हमारे महाराज के ग्रन्थ अणभय वाणी जी का ही करते हैं अन्य ग्रन्थ का नहीं। हम लोग तीर्थ यात्रा पर भी नहीं जाते हैं। चौधरी के अनुसार शौक के तौर पर कोई किसी स्थान पर घूमने फिरने चला जाए यह अलग बात है लेकीन गांव में तीर्थ स्थलों के नाम से कोई कही नही जाता है। अन्य निवासी पचास वर्षीय रामूजी, रामपाल चौधरी, गोविन्द नारायण जाट, रामपाल चौधरी ने भी बचपन से ही व अपने पुरखों से ही इन परंपराओं के चले आने की बात करते हैं ।

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