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Tuesday, July 14, 2009

तोषनीवाल की देह दान


अजमेर. नया बाजार, शाहपुरा निवासी सेवानिवृत्त बैंक मैनेजर लालूराम तोषनीवाल (88) का बीती रात निधन हो गया। उनकी अंतिम इच्छा के मुताबिक परिजनों ने उनकी देह अजमेर के जवाहरलाल नेहरू आयुर्विज्ञान महाविद्यालय (मेडिकल कॉलेज) को सुपुर्द कर दी। इससे पूर्व अंतिम यात्रा डोल के रूप में उनके निवास से रामद्वारा तक निकाली गई।

डोल यात्रा में जनसैलाब उमड़ पड़ा। भीलवाड़ा जिले के इतिहास में किसी व्यक्ति के मरणोपरांत देहदान का यह पहला मामला है। वे शाहपुरा में माहेश्वरी समाज के तोषनीवाल परिवार में सबसे बुजुर्ग थे। वे प्रत्येक सामाजिक कार्य से जुड़े रहे। तोषनीवाल अपने पीछे भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं। उनके एक पुत्र, पुत्रवधू, एक पौत्र पौत्रवधू हैं। पत्नी छाऊदेवी का निधन १क् वर्ष पूर्व हो गया था। सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने शाहपुरा में हैंडलूम का व्यवसाय प्रारंभ किया था।

रामदयालजी के समक्ष की थी घोषणा

स्व. तोषनीवाल के पुत्र कैलाशचंद्र ने बताया कि पिताजी ने नवसंवत्सर के अवसर पर रामनिवास धाम में आयोजित समारोह में रामस्नेही संप्रदाय के पीठाधीश्वर जगतगुरु आचार्यश्री रामदयालजी महाराज के समक्ष देहदान का संकल्प लिया थाउसकी औपचारिक कार्रवाई वरिष्ठ नागरिक संस्थान शाहपुरा की १५ जून क्८ को हुई बैठक में प्रारंभ कर जिला कलेक्टर को पत्र लिखकर सूचित किया। इस पर अजमेर से जवाहरलाल नेहरू आयुर्विज्ञान महाविद्यालय (मेडिकल कॉलेज) की टीम तथा शाहपुरा सैटेलाइट चिकित्सालय के प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डा. एच.एस. सहवाल ने स्वास्थ्य परीक्षण कर देह दान के लिए आवश्यक औपचारिकताएं पूरी कीं।

वसीयत करनी पड़ी

मेडिकल कॉलेज के प्रावधानों के तहत लालूराम तोषनीवाल को अपनी देहदान के लिए ३१ अगस्त, क्८ को बाकायदा वसीयत करनी पड़ी। वसीयत के अनुसार उनके निधन के बाद पार्थिव देह को प्रांरभिक क्रियाक्रम के पश्चात मेडिकल कॉलेज के सुपुर्द कर दिया जाए। अजमेर के मेडिकल कॉलेज के देहदान प्रकल्प अधिकारी डा. विकास सक्सेना तथा विभागाध्यक्ष डा. एस.के. अग्रवाल ने मेडिकल कॉलेज में देहदान का पंजीयन कराया था।

पिता की इच्छा सर्वोपरि

पिताजी के देहदान की घोषणा करने के पश्चात मुझे जानकारी हुई। पहले तो कुछ संकोच हुआ पर उनकी इच्छा तथा संकल्प से अब खुश हूं। वैसे भी आज के युग में देहदान कौन करता है, पिताजी ने निश्चित रूप से महान पुण्य का कार्य किया है, हम उनके आदर्श से सदैव प्रेरणा लेते रहेंगे। -कैलाशचंद्र तोषनीवाल, पुत्र

संशय से मुक्ति दिलाती है गीता

इंदौर. भारतीय संस्कृति में विचारों की श्रेष्ठता है। गीता राष्ट्र और समाज को दिशा देने वाला अद्भुत ग्रथ है। संसार के मायाजाल में उलझकर मनुष्य भटकने लगता है तब गीता का संदेश हर किस्म के संशय से मुक्ति दिलाते हैं। भारतीय धर्म-संस्कृति का प्रतिबिंब है गीता। यह पुरुषार्थ की प्रेरणा देता है। देश की दुर्दशा गीता की अनदेखी की वजह से ही है। सभी धर्मग्रंथों का यह शिखर है।

गीता भवन में चल रहे 51 वें अ.भा. गीता जयंती महोत्सव में स्वामी गोविंददेव गिरि महाराज ने ये विचार व्यक्त किए। मंगलवार को मोक्षदा एकादशी जयंती महापर्व पर हजारों भक्तों ने सामूहिक गीता पाठ भी किया। पं. कल्याणदत्त शास्त्री के निर्देशन में ब्राrाणों ने भगवान शालिग्राम के श्रीविग्रह पर विष्णु सहस्त्रनाम पाठ से सहस्त्रार्चन किया। अंतरराष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के आचार्य स्वामी रामदयाल महाराज ने धर्मसभा की अध्यक्षता की। हजारों श्रद्धालुओं ने संत-विद्वानों के साथ गीता का सामूहिक पाठ कर दान भी दिया।

सुबह भजन-संकीर्तन के साथ महोत्सव के चौथे दिन कार्यक्रम का शुभारंभ किया। गोविंददेव गिरी और भीलवाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी जगदीशपुरी महाराज के प्रवचनों के बाद अध्यक्षता करते हुए स्वामी रामदयाल महाराज ने कहा गीता संपत्ति नहीं, संस्कृति पर केंद्रित ग्रथ है। गीता का संदेश हर युग में शाश्वत और प्रासंगिक है।

दोपहर के सत्र में ऋषिकेश के स्वामी अभिनव शेखरेंद्र तीर्थ, वृंदावन के स्वामी प्रणवानंद, स्वामी श्यामाशरण, अयोध्या के रामानुजाचार्य स्वामी श्रीधराचार्य, स्वामी गोविंददेव गिरी के अलावा पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने भी गीता महत्व पर ओजस्वी वक्तव्य दिया। मंच संचालन पं. रवि शास्त्री ने किया। बाबूलाल बाहेती, गोपालदास मित्तल, राम ऐरन, महेशचंद्र शास्त्री, बनवारीलाल जाजू, हरिकिशन मुछाल, प्रेमचंद्र गोयल आदि ने संत-विद्वानों की अगवानी की और आरती में भाग लिया।

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