इंदौर. भारतीय संस्कृति में विचारों की श्रेष्ठता है। गीता राष्ट्र और समाज को दिशा देने वाला अद्भुत ग्रथ है। संसार के मायाजाल में उलझकर मनुष्य भटकने लगता है तब गीता का संदेश हर किस्म के संशय से मुक्ति दिलाते हैं। भारतीय धर्म-संस्कृति का प्रतिबिंब है गीता। यह पुरुषार्थ की प्रेरणा देता है। देश की दुर्दशा गीता की अनदेखी की वजह से ही है। सभी धर्मग्रंथों का यह शिखर है।
गीता भवन में चल रहे 51 वें अ.भा. गीता जयंती महोत्सव में स्वामी गोविंददेव गिरि महाराज ने ये विचार व्यक्त किए। मंगलवार को मोक्षदा एकादशी जयंती महापर्व पर हजारों भक्तों ने सामूहिक गीता पाठ भी किया। पं. कल्याणदत्त शास्त्री के निर्देशन में ब्राrाणों ने भगवान शालिग्राम के श्रीविग्रह पर विष्णु सहस्त्रनाम पाठ से सहस्त्रार्चन किया। अंतरराष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के आचार्य स्वामी रामदयाल महाराज ने धर्मसभा की अध्यक्षता की। हजारों श्रद्धालुओं ने संत-विद्वानों के साथ गीता का सामूहिक पाठ कर दान भी दिया।
सुबह भजन-संकीर्तन के साथ महोत्सव के चौथे दिन कार्यक्रम का शुभारंभ किया। गोविंददेव गिरी और भीलवाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी जगदीशपुरी महाराज के प्रवचनों के बाद अध्यक्षता करते हुए स्वामी रामदयाल महाराज ने कहा गीता संपत्ति नहीं, संस्कृति पर केंद्रित ग्रथ है। गीता का संदेश हर युग में शाश्वत और प्रासंगिक है।
दोपहर के सत्र में ऋषिकेश के स्वामी अभिनव शेखरेंद्र तीर्थ, वृंदावन के स्वामी प्रणवानंद, स्वामी श्यामाशरण, अयोध्या के रामानुजाचार्य स्वामी श्रीधराचार्य, स्वामी गोविंददेव गिरी के अलावा पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने भी गीता महत्व पर ओजस्वी वक्तव्य दिया। मंच संचालन पं. रवि शास्त्री ने किया। बाबूलाल बाहेती, गोपालदास मित्तल, राम ऐरन, महेशचंद्र शास्त्री, बनवारीलाल जाजू, हरिकिशन मुछाल, प्रेमचंद्र गोयल आदि ने संत-विद्वानों की अगवानी की और आरती में भाग लिया।
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