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Saturday, September 5, 2009

रामनिवास-धाम(शाहपुरा) का निर्माण : एक दृष्टि में









स्वामी रामचरण जी ने वि सं 1855 को अपना शरीर त्यागा । स्वामी जी महाराज की तेरहवीं की समाप्ति पर राजा अमर सिंह जी तथा समस्त रामस्नेही एवं जिज्ञासु भक्तजनों ने मिलकर गुरुधाम बनाने का विचार किया। और स्वामी श्री रामजन जी के सन्मुख निवेदन किया। आचार्य श्री ने स्वीकृती प्रदान कर दी। स्वामी जी का अन्त्येष्टि संस्कार जिस स्थान पर हुआ,उसी स्थान पर विशाल रामद्वारे का निर्माण शुरु हुआ। सभी भक्तजनों ने भेंट राशि एकत्रित कर अनुभवी कारीगर जरुर खां व कुशाल खां को बुलाकर निर्माण कार्य शुरु कर दिया। निर्माण कार्य के लिये चूना पत्थर ईंटे दूर से मंगवाना था। इसके लिये विचार चल रहा था। तब एक सन्त को रात्रि में स्व्प्न आया कि पत्थर दूर से मंगवाने की आवश्यकता नहीं, पास ही कांटी नामक ग्राम है,उसकी सीमा में उत्तर की तरफ़ खुदा लो । इसी स्व्प्न के आधार पर उस स्थान पर खुदाई कराने से यह सुन्दर पत्थर निकला। जिससे रामनिवास धाम का निर्माण हुआ। इसका दरवाजा पूर्व की तरफ़ रखा गया है जिसको सूरजपोल कहते है। इसके भीतर दोनो तरफ़ नाल है, दोनो सवा छ्ह फ़ीट चौड़ी है एवं जिनमे तेरह- तेरह सीढीयां है।
नीचे एक मंझिल का कार्य पूरा होने पर ऊपर बारहदरी(सभा-स्थल) का कार्य प्रारंभ किया गया। जिसमें कुराईदार स्तम्भ लगाये गये। इस बारहदरी में बारह खम्भे व बारह ही दरवाजे है। इसके एक पश्चिमी खम्भे पर निम्न प्रकार से शिलालेख है।–

रामचरन ब्रह्म पद मिले, निवृति कर गये दास।
रामस्नेहा सबन मिले, किनों रामनिवास॥
संवत अठारा सौ परै, गये पचावन और।
चैत बदी 5 मंगला, बनी भजन हित ठौर॥
इस बारहदरी में कोई मुर्ति चित्र व पादुका आदि कुछ भी नहीं है। बारहदरी के बीचों-बीच राम-राम व कुछ साखियाँ लिखी है। इस बारहदरी के तीन परिक्रमा है। दो परीक्रमा सहित बारहदरी में एक सौ आठ खम्भे है और चौरासी दरवाजे है। तीसरी परिक्रमा फ़िरणी पर है, जिसके चारों ओर कठेड़ा लगा है। सूरजपोल पर अतिसुन्दर शोभायुक्त झरोखा बना है जिसकी तीन घुमटियों पर पाँच कलश है। इसके दोनो ओर काले रंग के पत्थर की दो छतरियाँ इन छतरियों के पास ही उत्तर व दक्षिण को दो कबाणिये तीन तीन कलशों के सफ़ेद पत्थर के बने हुए अतिसुन्दर दृश्य दिखाई देते है।
इस प्रकार दूसरी मंझिल का कार्य पूरा होने पर तीसरे खण्ड का कार्य प्रारंभ हुआ। बारहदरी के चौतरफ़ तीसरी फ़िरणी की दीवारों मे छाजे लगे हुए है, ऊपर बीचों-बीच में चत्र महल बनाया गया है। जिसमें 25 घुमटियों पर 47 कलश है। जिसमे 124 खम्भे है। सात प्रकार के सात झरोखे बनाये गये है। चारों खूँटों पर चार छतरियाँ है। इस पर चत्र महल का चौथा खण्ड और बनाया गया है। इन चार खण्डों का दृश्य ऐसा प्रतीत होता है मानो जल में कोई जहाज तैर रहा हो। इसमें कांच का कार्य किया गया है। बारहदरी में सतसंग, प्रवचन, अखण्ड राम-भजन होता है। इसी बारहदरी में स्वामी श्री रामचरण जी के शिष्यों की सूची भी है।
इस प्रकार से निर्मित बारहदरी में आचार्य श्री जी की गादी स्थापित है। इस गादी पर बैठकर अन्तरराष्ट्रीय रामस्नेही सम्प्रदाय के पीठाधीश्वर भक्तों को सम्बोधित करतें है। आचार्य श्री की अनुपस्थिती में मुख्य गादी रिक्त रहती है। परन्तु इसके आस-पास सन्त अवश्य रहते है। मुख्य गादी को सुनसान नहीं छोड़ा जाता है। श्वेत वस्त्रों से निर्मित यह मुख्य गादीसम्प्रदाय में आदर का प्रमुख केन्द्र मानी जाती है।

आचार्य श्री निवास कक्ष –
आचार्य श्री के निवास हेतु रामद्वारा में एक पृथक से महल है जिसमे आचार्य श्री निवास करतें है। यह भवन इस तरह से बनवाया गया है कि आचार्य श्री के एकान्तवास में किसी प्रकार का व्यवधान ना हो।
सरस्वती भण्डार-
इस भण्डार गृह में रामस्नेही सम्प्रदाय के सन्तों की अनुभव वाणियों के संकलन संग्रहित है। इसी भण्डार से शिष्यों को गुटके प्रदान किये जाते है। सरस्वती भण्डार को इस धर्म सम्प्रदाय की आत्मा कहा जा सकता है। सम्प्रदाय संबंधित सभी प्रकार के लिखित आलेख इस भण्डार में सुरक्षित रखे जाते है।
मुख्य भण्डार-
धाम में एक मुख्य भण्डार की व्यवस्था है। इस भण्डार में खाद्य सामग्री एवं वस्त्र आदि रखे जाते है। बाहर से आने वाले सन्तों व भक्तों के खाने पीने का प्रबन्ध यहीं से किया जाता है।
समाधि स्तम्भ जी-
यह स्थान बारहदरी के ठीक नीचे समाधि के मध्य में स्थित है। यहाँ एक अष्टकोणीय स्तम्भ बना हुआ है जो ऊपर बारहदरी से सटा हुआ है। देखने पर ऐसा लगता है कि बारहदरी इसी पर स्थित है। मनौती माँगने वाले इसकी जाली या द्वार पर लच्छा बाँध देते है।मनोकामना पूर्ण होने पर रामनिवास-धाम के बाहर प्रसाद तौल कर वितरित करने की परम्परा चली आ रही है।
हरि विलास-
यह धाम का आकर्षण है। इसमे आचार्य श्री अपनी बैठक करते है। इसका निर्माण पाँचवें आचार्य स्वामी श्री हरि दास जी महाराज द्वारा कराये जाने से “हरि विलास” के नाम से जानी जाती है।
हिम्मत विलास-
रामस्नेही सम्प्रदाय के षष्ठम आचार्य स्वामी श्री हिम्मत राम जी महाराज जिस कक्ष का उपयोग अपने लिये करते थे, उसका नाम “हिम्मत विलास” रखा गया है। यह कक्ष भी दर्शनीय है।
हवा महल-
रामनिवास-धाम मे हवा महल का नाम उस कक्ष को दिया गया है जिसमे चारों ओर से हवा आने की व्यवस्था की गयी है।ग्रीष्म ॠतु मे इसका विशेष उपयोग किया जाता है।
जग निवास-
दसवें आचार्य स्वामी श्री जगराम दास जी महाराज द्वारा इसका निर्माण कराया गया था। वे इसी में निवास करते थे। इसलिये इसका नाम जग निवास रखा गया। यह भी अपने आप मे अनूठा है।
बादल महल-
अन्य प्रमुख आकर्षणों में बादल महल भी धाम का एक दर्शनीय अंग है, छह चौकियों पर निर्मित यह स्थान साधना के लिये उपयुक्त है।
राम झरोखा-
आचार्य स्वामी श्री दयाराम जी महाराज द्वारा इसका निर्माण कराया गया था।
चत्र महल- बारहदरी से ऊपर आचार्य श्री चत्र दास जी महाराज द्वारा इसका निर्माण कराया गया था।
न्याय मन्दिर-
यह राजा रणजीत सिंह जी की छ्त्री है, यहाँ आचार्य श्री न्याय गादी पर बिराजकर अशोभनीय व अमर्यादित आचरण करने वाले सन्तों का न्याय करते थे।
लाल चौक-
गंगापुर के स्वर्गीय दादा गुरू श्री साध महाराज, श्री कार्यराम जी व पूज्य गुरु श्री उम्मेद राम जी भण्डारी की पुण्य स्मृति में लाल चौक की छत का निर्माण करवाया था। आद्याचार्य श्री रामचरण जी महाराज का साधना स्थल- रामनिवास धाम के समीप उत्तर दिशा में यह राजा भारत सिंह जी की छ्त्री आज भी स्थित है, जहाँ बैठकर स्वामी श्री रामचरण जी महाराज ने सर्वप्रथम अपनी साधना स्थली बनाई थी। इसी छ्त्री के चारों ओर घास के पड़त लगाकर स्वामी श्री ने इसी में निवास किया था। तेरहवें आचार्य श्री राम किशोर जी ने इसका जीर्णोद्वार करवाकर फ़र्शी, चिप्स, सीढीयोँ एवं द्वार आदि का निर्माण करवाया था।

2 comments:

  1. आप को बहुत बहुत धन्यवाद इस महत्वपूण जानकारी के लिए
    आशा हे आप आगें भी हमें इसी प्रकार बहुत सी जानकारी पर्दान करते रहेंगे

    अमृत'वाणी'.COM

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  2. AAP NE HAME SAMPURN RAM DWARE KE NIRMAN KI JANKARI DI AAP KO DHANYWAD

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